भारत छोड़ो आन्दोलन : स्वतंत्र भारत का मजबूत आधार

ब्रिटिश हुकूमत ने भारत को अपना उपनिवेश बना रखा था। भारत के मजदूरों, किसानों और आम नागरिकों का पूरी तरह शोषण किया जा चुका था। जबरन व्यापारिक खेती कराकर न जाने कितनी ही बार अकाल जैसे संकट से भारतवासियों को जूझना पड़ा। इन सब के अलावा और इतनी समस्याएँ और परेशानियाँ रहीं कि भारत में हर जगह अपनी आजादी और अधिकारों के लिए नागरिकों द्वारा आन्दोलन किए जाने लगे।

भारत की स्वतंत्रता में महात्मा गाँधी के योगदान को कोई नकार नहीं सकता। उनके द्वारा कई आन्दोलन किए गए जिनमें अधिकतर सफल रहे। सत्याग्रह और असहयोग आन्दोलन जिनमें शामिल रहे। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश हुकूमत का अंत करने के उद्देश्य से 14 जुलाई 1942 को भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की वर्धा में आयोजित एक मीटिंग में “भारत छोड़ो आन्दोलन” का एक प्रस्ताव पास किया गया। जिसे काँग्रेस के सभी नेताओं ने पास कर दिया।

इस आन्दोलन के अंतर्गत महात्मा गाँधी ने देश की स्वतंत्रता के लिए विभिन्न आंदोलनों को एकत्र कर एक भारत छोड़ो आन्दोलन खड़ा किया। जो स्वतंत्रता के संग्राम में मील का पत्थर साबित हुआ। इसी आन्दोलन में महात्मा गाँधी ने सभी को संबोधित करते हुए “करो या मरो” का मन्त्र दिया।

इस आन्दोलन में देश के हर वर्ग ने भाग लिया। किसान, मजदूर और छात्रों के साथ यह आन्दोलन अत्यधिक मजबूत बना। इस आन्दोलन ने भारत की जनता में एक नयी चेतना का प्रसार किया। इस चेतना और ‘करो या मरो’ का नारा पाकर भारतीय जनता ने अपनी आजादी के लिए स्वयं को इसमें पूरी तरह झोंक दिया। अंग्रेजों द्वारा कई जगह आन्दोलनकारियों पर लाठियाँ बरसाई गयीं। कई लोग इस हिंसा में शहीद भी हुए।

इस आन्दोलन की सफलता का प्रमुख कारण यह भी है कि इसमें महिलाओं ने न सिर्फ बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया बल्कि एक सशक्त नेतृत्व भी प्रधान किया। सुचेता कृपलानी जी इसका सबसे अच्छा उदाहरण है।

आन्दोलन के दौरान काँग्रेस के लगभग सभी महत्वपूर्ण नेताओं को जेल में डाल दिया गया। इसके बाद भी इस आन्दोलन को कोई फर्क नहीं पड़ा। बल्कि यह और उभर कर सामने आया। इस आन्दोलन ने स्वतंत्रता की लड़ाई में हमें एक मज़बूत आधार दिया। अंततः अंग्रेजों को 15 अगस्त 1947 को यह देश छोड़कर जाना पड़ा।

इस आन्दोलन के साथ ही काँग्रेस के नेताओं को देश के अन्य नेताओं द्वारा विरोध का सामना करना पड़ा। जिसमें मुस्लिम लीग के मोहम्मद अली जिन्ना, हिन्दू महासभा के विनायक दामोदार सावरकर और गोलवरकर शामिल थे। इन्होने भारत छोड़ों आन्दोलन का जमकर विरोध किया। मगर वह इसमें असफल हुए और हमारा देश अंततः स्वतंत्र हुआ।