बैंकों का राष्ट्रीयकरण : गरीबों व वंचितों के लिए एक क्रांतिकारी कदम
देश की प्रथम महिला एवं सबसे ताक़तवर प्रधानमंत्रियों में से एक इंदिरा गाँधी जी विभिन्न जनहितैषी कार्यों में एक महत्वपूर्ण कार्य देश के 14 निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण था। उनके इस कदम ने पूरे देश में क्रांति ला दी।
उस वक़्त देश में कई निजी बैंक हुआ करते थे। जिनकी पहुँच शहरी इलाकों तक ही सीमित थी। ग्रामीण इलाकों में लोगों तक बैंकों की पहुँच सिफ़र थी। बैंकिंग सुविधाओं से वंचितों और गरीबों की दूरी कम करने में श्रीमती इंदिरा गाँधी जी का यह कदम सबसे महत्वपूर्ण है।
60-70 के दशक में बैंक सिर्फ अमीरों की जागीर हुआ करता था। सिर्फ वही लोग बैंकिंग सुविधाओं का लाभ लेते थे। बैंकों का राष्ट्रीयकरण होने के बाद इन सुविधाओं का लाभ गरीबों को मिला। गरीब किसानों का शोषण करने वाले लालाओं और महाजनों से उन्हें निजात मिली। अब वह महाजनों के द्वारा दिए जा रहे ऋण के कुचक्र में नहीं फँसते, जो कभी भी ख़त्म नहीं होता था। उन्हें बैंक से लोन आसानी से मिलने लगे इस लिए अब उन्हें वही पैसे चुकाने होते थे जो उन्होंने कभी उधार लिए थे। इससे गरीब किसानों के जीवन में सुधार हुआ। उन्होंने पैसों की बचत करना प्रारंभ किया और इस वर्ष के बचाए गए पैसों का उपयोग अगले वर्ष की फसल में किया। जिससे देश की अर्थव्यवस्था में बढ़ोत्तरी हुई और लोग भी तनावमुक्त होकर खुश रहने लगे।
दरअसल बैंकों का राष्ट्रीयकरण लोगों को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में इंदिरा गाँधी जी का महत्वपूर्ण कदम था। जनता के हित को सबसे आगे रखने वाली प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी जी के इस कदम को जनता ने खूब सराहा। सरकार द्वारा दी जाने वाली मदद अब आसानी से लोगों तक पहुँचने लगी। यह श्रीमती इंदिरा गाँधी जी की दूरगामी सोच का ही परिणाम था। इस महत्वपूर्ण कदम का उस समय की कई विपक्षी पार्टियों ने विरोध किया।
इंदिरा गाँधी जी के साथ ही पूरी काँग्रेस पार्टी ने जनता के हित में सदैव कार्य किया चाहे वह भू-सुधार की बात हो, बैंकों के राष्ट्रीयकरण की बात हो, भारत में कंप्यूटर के प्रवेश की बात हो, आर्थिक सुधार की बात हो या कई अन्य महत्वपूर्ण कदम।
मनमोहन सिंह जी द्वारा प्रारंभ किया गया RTI एक क्रांतिकारी कदम रहा, उसके बाद मनरेगा जैसी योजना आज भी सरकारों को मदद की गयी है। कहीं न कहीं यह सारे महत्वपूर्ण फैसले एवं सुधार बैंकों के राष्ट्रीयकरण द्वारा ही आसान हो पाए हैं।
बैंकों के वर्तमान परिदृश्य की बात करें तो सरकार की गलत नीतियों के कारण बैंकों के हालत बहुत ख़राब हो चुके हैं। कई बैंक बंद हो गए हैं तो कई बैंक बंद होने की कगार पर हैं। बड़े-बड़े बैंक अब जोड़े जा रहे हैं। बैंकों पर NPA हावी हो चुका है। नरेंद्र मोदी की नोटबंदी और उनके व्यवसायी मित्रों ने देश की बैंकिंग व्यवस्था को गर्त में डाल दिया है।